एक छंद लिखूं या प्रसंग लिखूं
फिर सोचा इस टूटे दिल पर क्यूँ ना कोई व्यंग्य लिखूं…..
एक व्यथा लिखूं या वजह लिखूं
फिर सोचा ! क्यूँ ना सब कुछ “यूं ही बेवजह लिखूं….
एक हँसी की कहानी लिखूं या खुद हँसी का पात्र बनूं….
फिर सोचा लोगो की बातें
लोगो पर ही छोड़ चलूं…
एक ये दरिया को देख के मैं
क्या नापू इसकी गहराई….
फिर सोचा जाने दे जहाज़ी
भले तुम इस नौका पर
चीज़ तो है पराई……
Jhaji
बहुत खूबसूरत
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Dhnyawad bhai ji
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Beautiful lines😘
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सुंदर रचना
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धन्यवाद आपका बहुत बहुत इसे पढ़ने और सराहने के लिए।।
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Dhanywad
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#Nice BLOG!!!
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Thanku
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Thanks
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